कवि सिद्धार्थ अर्जुन

,, *सब के सब थे सही एक मेरे सिवा* ,,


मिले ज़िन्दगी तो दो टूक बात करूँ,
एक गुज़रे तो नये दौर की शुरुवात करूँ,
कोई फ़ुर्सत में मिले आके मुझे,
उससे साझा सभी हालात करूँ.......


ख़ता उसकी,भुला दिया मुझको,
ख़ता मेरी कि उसको याद किया,
उससे बेबस भी कोई क्या होगा,
जिसने ख़ुद को ख़ुद ही बर्बाद किया...


ख़ुशी सबकी रही एक मेरे सिवा,
हँसी सबकी रही एक मेरे सिवा,
आज स्वीकार करते हैं इस दौर में,
सब के सब थे सही एक मेरे सिवा....


            कवि सिद्धार्थ अर्जुन


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