कवियत्री  वैष्णवी पारसे

थाम कर मेरा हाथ ,प्रियतम भी था साथ, एक रोज बैठी थी मैं , नदी के किनार पे ।


प्रेम का मधुर गीत , गाते गाते झूम उठे, मन की मधुर धुन , बजी थी सितार पे ।


कोयल की कुहू कुहू, पपीहे की पिहु पिहु, प्रेम की प्रकृति थी, मौसम की बहार पे। 


हवाये भी छू रही थी , रह रह कर हमें , पुरवाई ताकती थी , प्रीत की पुकार पे।


    कवियत्री 
वैष्णवी पारसे


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