*पथराई आँखें*
(निर्भया की माँ)
^^^^^^^^^^^^
न्याय का खेल-
बहुत हो गया-
कानून बाजों ने,
भ्रमित कर मुझे तड़पाई।
हर पल-पल मै-
सुबह समाचार देखती-
अच्छी खबर मिलेगी,
गुहार लगाई।
लम्बी रास्तों में-
पथराई आँखें-
उम्मीद की किरण,
आँसू सूख गई।
सपने में निर्भया-
हर समय आती-
माँ,कब मिलेगा न्याय मुझे,
मै आस छोड़ गई।
झूठ का बोलबाला-
प्रतिदिन घटता यहां-
मौका देते बार बार,
लड़ते-लड़ते थक गई।
झरने जैसे-
रोज-रोज दलीलें-
देश का साथ मिला,
सबकी दुआएं जीत गई।
🧕
*****
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें