*"कंटक जाल हटाना है"* (गीत)
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*माना कि सफर कुछ लंबा है, पर चलते ही जाना है।
पथ पर अविचल चलकर ही तो, कंटक-जाल हटाना है।।
चाहे जितने अटकल आयें, मंज़िल को तो पाना है।
पथ पर अविचल चलकर ही तो, कंटक-जाल हटाना है।।
*ऋतुएँ भी तो बदलेंगी ही, शरद-उष्ण भी आना है।
सहकर मौसम की मारों को, समरस-सुमन खिलाना है।।
हर्षाकर हिय भारत भू का, अमन-चमन लहकाना है।
पथ पर अविचल चलकर ही तो, कंटक-जाल हटाना है।।
*नवल-शोध, नित नव उन्नति से, कर्म-केतु फहराना है।
हम हैं पावक-पथ के पंथी, लोहा निज मनवाना है।।
हार-हराकर हर हालत में, पंथ प्रशस्त कराना है।
पथ पर अविचल चलकर ही तो, कंटक-जाल हटाना है।।
*मानवता के जो हैं रोधी, उनको सबक सिखाना है।
आस्तीनों के साँपों का भी, फन अब कुचला जाना है।।
लिख साहस से इतिहास नया, अपना धर्म निभाना है।
पथ पर अविचल चलकर ही तो, कंटक-जाल हटाना है।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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