सब्रो-करार दिलका बचाया न जा सका
उनको गलेसे अपने लगाया न जा सका
जब भी मिले वो इतने उलजे हुवे मिले
अपने गमोंका हाल सुनाया न जा सका
रौशन रहा जहां मेरा जिनके खयाल से
रीश्ता हयात भर का निभाया न जा सका
कितने लम्हे हमको मयस्सर रहे मगर
दिलका जख्म भी उनको बताया न जा सका
पीछा कभीन छुटा जलती रही अगनसी
मासूम सुलगते मनको बुजाया न जा सका
मासूम मोडासवी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें