मासूम मोडासवी

आये हैं  तलब  लेकर लोटेंगे सीफर लेकर
कैसाये नसीब अपना आया है बशर लेकर


ऐक  आगसी जलती हुइ सीने में सदा पाई
बरसे  हैं  सदा  बादल  माथे पे शरर लेकर


चाहत की तमन्ना ने खींचा हमें उस जानिब
छोटाबडा साया जहां चलताहे कमर लेकर


शीरीं सी  जबां  अपनी रखते हैं जहां वाले
हर सीमत नजर आया हर हाथ सीफर लेकर


मौकेतो बहोत आये ख्वाबों को सजाने के
जीना भी नहीं आया बंदो को हुनर लेकर 


मासूम  जमाने  के  अजब  तेवर  नये देखे
जीते  हैं सभी देखो बदले की नजर लेकर


                             मासूम मोडासवी


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...