अपना किसी को बनाना नहीं।
हमदर्दी का अब ये जमाना नहीं।
पुकारे कोई पास जाना नहीं।
पड़ोसी से भी बतियाना नहीं।।
गिरके उठेंगे,संभल जाएंगे खुद।
पकड़के किसी को उठाना नहीं।।
दौरे-मुश्किल किसी को देना तसल्ली।
कभी सच्चाई थी यह फसाना नहीं।।
देख बाहरी जमाने की रंगीनियां,
दिल को तुम अपने जलाना नहीं।
घर में रहे जो सुरक्षित रहोगे।
महामारी है ये आजमाना नहीं।।
कुछ दिन तो टालो सम्मेलन सभाएं।
मान लो शौक होगा पुराना नहीं।।
जो हो संक्रमित तो छुओ ना किसी को।
पास जाकरके जग को लुभाना नहीं।।
ईमान कायम तू रखना अभी भी।
मुसीबत में रब को भुलाना नहीं।।
अगर खा चुके हो ये मीठा जहर तुम।
स्वाद इसका किसी को चखाना नहीं।।
जान तेरी भी हो गर कहीं इसमें शामिल।
मरके रिश्ता यह झूठा निभाना नहीं।।
हमने सजाई जो दुनिया की महफिल।
अब हमारा ही इसमें ठिकाना नहीं।।
मुक्ता तैलंग, बीकानेर।
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