निधि मद्धेशिया कानपुर

स्त्री💐


हाँ,  मैं ही हूँ स्त्री...💐


नतमस्तक समक्ष पिता के
फिर भी जिद पूरी कर लेती,
खुले मन से हारती हूँ
भाई के लिए बन दुर्गावती,
रहती माँ की सच्ची सखी,
हार जाती हूँ,  बेटी बनी,
सम्मान बचाने पति का 
हो जाती हूँ कभी सती,
संकट प्रिय के प्राणों पर हो
बन जाती हूँ सावित्री।
हाँ,  मैं ही हूँ स्त्री...💐


धारण किया गर्भ में
कौशल्या-यशोदा बनी और देवकी 
पुरुष तत्व बचाने ही 
कैकेयी-मन्थरा बनी,
पति, फिर आयी 
पुत्र के काम,
स्वीकार स्थान वाम,
युगों-युगों से समकक्ष पुरुष के
बन सत्यभामा गई युद्ध-भूमि
संग कृष्ण के,
अंगरक्षक तुम ही नहीं
अंगरक्षिका रही हर क्षण 
राधा बन बनी त्रिनेत्री। 
हाँ,  मैं ही हूँ स्त्री...💐


जीतने को किले
मुझको ही प्रथम किए,
कहलाई पंचाली,
हार की लाज बचाने जन्मी
पाँच पति वाली,
तुम्हारे छलावे से छली
तुम्हारे कलावे से बंधी,
पड़ोसी, रिश्ते और मित्र
पसंद नहीं जो जन
निभाती उनको मार कर मन,
सर्वश्रेष्ठ हूँ अभिनेत्री।
हाँ,  मैं ही हूँ स्त्री...💐


10:16
7/3/2020
निधि मद्धेशिया
कानपुर


 


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