माँ का सप्तम रूप कालरात्रि हाइकु
5,7,5
कालरात्रि माँ
शोक निवारिणी माँ
करूँ वंदन ।
श्याम वर्ण है
चीता चर्म साड़ी है
रूप कराली।
बुद्धि विदाता
जग कल्याणी माता
करो उद्धार ।
स्तुति पुकारे
चण्ड मुण्ड संहारे
हर्षित देव।
ध्यान लगाऊँ
धूप दीप जलाऊं
तुम्हे मनाऊँ ।
शक्ति की दाता
तू ही जग विधाता
भव से तारो ।
भोग लगाऊँ
तेरे ही गुण गाऊँ
शरण पड़ी।
बेड़ा हो पार
अज्ञानता से तार
दे दो माँ ज्ञान।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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