निशा"अतुल्य"

मन बंजारा
18. 3.2020


मन बंजारा भटक रहा है करने को अपनी पहचान
कहाँ कहाँ मैं ढूँढू तुमको पार करूँ कैसे व्यवधान


प्रभु बहाओ ज्ञान की गंगा हो जाऊं मैं भव से पार
जानूँगी मैं स्वयं को कैसे,करवाओ इसकी पहचान।


प्रभु मन बंजारा भटक रहा करने को अपनी पहचान ।


राम नाम का जपना मुझको अब भाता है सुबह शाम 
ध्यान लगा स्वयं को जानु करवाओ स्वयं से पहचान।


प्रभु मन बंजारा भटक रहा करने को अपनी पहचान ।


धूप दीप मैं कुछ ना जानू फूल चढ़ाऊँ कैसे श्याम 
चंदन तिलक लगाऊं कैसे बतलाओ मुझको घनश्याम


प्रभु मन बंजारा भटक रहा करने को अपनी पहचान ।


नंगे भूखे दिखते मुझको मन विचलित है सुबह शाम
कर्म परिभाषा सिखाऊं कैसे,प्रभु देदो मुझको ये ज्ञान।


प्रभु मन बंजारा भटक रहा करने को अपनी पहचान ।


आ जाओ अब एक बार प्रभु दे दो फिर गीता का ज्ञान
कर्म क्षेत्र है जीवन सबका फल की इच्छा हो न प्रधान।


प्रभु मन बंजारा भटक रहा करने को अपनी पहचान ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


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