निशा"अतुल्य"

कहाँ नही हो
19 .3 .2020


कहाँ नही हो प्रभु तुम बोलो
क्यों ढूंढ रही ये अंखिया प्यासी
मन क्यों मेरा भटक रहा है 
काहे बात ये समझ ना पाती ।


निर्गुण हो तुम कहीं सगुण हो
रूप तुम्हारे अलग यहां हैं
कोई तुम को राम कहे है
कोई ॐ का नाद करे है ।


बोलो मन क्यों समझ न पाये
प्रभु बोलो तुम कहाँ नही हो ?
मन अर्पित चरणों मे तुम्हारे
वास करो तुम ह्रदय हमारे ।


तुम हो अनन्त अविनाशी
हर कण में है वास तुम्हारा
रूप धरा बारिश सूरज तुम
चाँद सितारे तुमरे धाती ।


प्रकृति का रूप निराला
ये ही रूप है तुमको भाया
जग के पालन हार तुम्ही हो
तुम तो हो घट घट के वासी ।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


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