निशा"अतुल्य"

शैलपुत्री मैया 


कर दी घट स्थापना मैया
आओ सजा दरबार
कैसी ये विपदाएं आयी
कर दो बेड़ा पार 


मैया जी सबको दे दो ज्ञान


पिता तुम्हारे हिमालय राज है
प्रथम रूप तुम दुर्गा
वृषारूढा स्वरूप तुम्हारा 
हाथ त्रिशूल है धारा
बाएं हाथ कमल लिए हो
सौम्य स्वरूप तुम्हारा


देने वाली माता तुम हो 
वरद हस्त सिर रखो दो 
ज्ञान बुद्धि की दाता मैया
संकट सब तुम हर लो 


रिद्धि सिद्धि की देनेवाली
जो जन तुमको ध्याये
कृपा करती कृपालिनी मैया
धन संपत्ति वो पाये ।।      


धूप दीप जलाऊँ माता
तुमको भोग लगाऊं 
मैं मूर्ख खलकामी मैया
कैसे तुम्हें मनाऊँ ।


शिव शंकर की प्रिया भवानी
हर संकट दूर भगाए 
अपनी शरण मे रखना मैया
हम ये अलख जगाएं ।


हम बालक अज्ञानी मैया
हमको राह दिखाना
कर दो बेड़ा पार मैया जी
मन समझ नही कुछ पाता।।      
   स्वरचित                               
निशा"अतुल्य"


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