निशा"अतुल्य"

निशा"अतुल्य"
देहरादून
14.3.2020
*वो बीते पल*


सुनो क्या याद है 
आज भी तुम्हें
वो चाय की दुकान 
जिसके बाहर खड़े 
करते थे तुम इंतजार
और देख मुझे 
हल्के से मुस्कुराते
मेरे पहुंचने से पहले 
दो चाय के गिलास थाम हाथ में
थोड़ा आगे बढ़ आते ।
आज फिर गुजरी उस मुकाम से
वो ही चाय की दुकान
कुछ सूनी सी 
एक छवि लगी 
तभी ख़्याल आया 
तुम्हारा चले जाना 
बिन बताये मुझे ।
दे कर लंबा इंतजार
जो सालता है मुझे
आज उठा कलम 
बैठ गई लिखने एक पाती
कुछ उमड़ते भावों की तुम्हे ।
और डाल दी उसे
बिन लिखे पते पर 
कह डाकघर में 
पहुँचा देना 
अनजान पते पे कहीं।
शायद चेहरा याद हो 
डाक बाबू को तुम्हारा 
अक़्सर देखते थे 
वो ले हाथों में हाथ 
घूमते चाय पीते 
तुम्हे व मुझे ।
बस इसी उम्मीद पर
डाला एक ख़त 
अपने इंतजार का
तुम्हें 
जिसे रख लिया 
डाक बाबू ने 
देख सूने नयन मेरे ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


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