सखियाँ
16/ 3/ 2020
एक प्याला चाय
और मुस्कुराहट
दबा देती है उठती
हर पीड़ा।
अच्छा लगता है
तुम्हारा पूछना
क्या पीओगी
और देख कर सखी का मुख
एक कप चाय
मेरा कहना ।
खो जाना
साँझा करना
अपने सुख दुःख को
कभी चमकती आंखे
कभी वो ही नमी से गहराई।
हौले से कंधे पर
हाथ रख कर कहना
चल छोड़ यार
ये घर घर की कहानी है।
उठते है इससे ऊपर
कुछ सम्वेदनाएँ जगानी है
सभी सखियों के सँग मिल कर
एक अलख जगानी है
अब कोशिश दुसरीं तरह करते हैं
अपनी ही हंसी से
ये दुनिया हरानी है।
शून्य जब तक शून्य है
जब तक कोई संख्या
सामने न लिखी जानी है ।
अब हम शून्य नही
संख्या बन जाते हैं
शून्य के आगे लग जाते हैं
मान उसका बढा कर
ख़ुद को बड़ा बनाते हैं
अनंत निर्विकार मन
गगन छूने चले जाते है
सूरज को कर बंद मुठी में
कतरा कतरा बहाते हैं।
ये जीवन है तेरा मेरा सखी
अब अपनी ही तरह
सखियों सँग जी जाते हैं
चल एक कप चाय
साथ बैठ कर पी जाते हैं ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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