परिवर्तन
28.3.2020
क्या हुआ है फिज़ाओ को
क्यों कोई बाहर नही
अपना को ख़ुद ही सवांर
रही शायद प्रकृति ।
करते अतिक्रमण मानव
क्यों समझ तुम्हें आती नही
बहुत समझाया दिखा क्रोध
अपना जब तब कभी कभी।
रहो कुछ दिन अब घरों में अपने
जब तक न कर लूं मैं श्रृंगार अपने
समझो ना बेड़ियां तुम इसे
सम्भल जाओ सुनो मानव
रहना होगा घरों में तब तक
पर्यावरण न हो जाए शुद्ध जब तक
ख़ुद को संभालो और दूसरों को भी
सिखलाया ये ही प्रकृति ने हमें
करो सम्मान सभ्यता, संस्कृति का
संभल जाओ मानो बात सभी
वरना हो जायेगा सारा विनाश यहीं ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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