यादों की बारात
11/ 3 /2020
यादों की बारात चली
याद दिलाती खट्टी मीठी
वो आँगन मेरे बचपन का
वो बचपन का मेरा झूला
पंछी बैठ करें जिस पर
कलरव सुबह सवेरे का ।
मैं उदास जब हो जाती थी
बहलाते थे वो मन मेरा ।
चली यादों की बारात चली
ले सँग मुझे यौवन की ओर
कुछ उड़ती उमंगे मेरी थी
कुछ ख़्वाब सुनहरे हर पल के
कुछ उनको पूरे किए मैंने
फाड़ चटान निकला वो
जैसे कोई पौधा जीवन का
फूल उस पर था मुस्काया
वो उमंगे मेरी सा खिला रहा
सँग भले ही कांटे थे
यादों में हर पल जिंदा है
कुछ बीते पल मेरे जीवन के।
धीरे धीरे फिर बढ़ी आगे
अब उपवन एक सजाया मैंने
हर सुख दुःख मिल कर बाँट लिया
यादों का हर पल मुस्काया
अब चांदी चमकती हैं बालों में
हल्की सी थकन भी लगती है
पर उल्हासित मन मेरा
यादों को सजों कर हर पल के
जीवन को महकाया मैंने ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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