निशा"अतुल्य"
देहरादून
सागर
3 /3 /2020
सागर से गहरा प्रेम है मेरा
तू समझे ना समझे कान्हा
प्रेम चुनरिया काली कर ली
नाम तेरे की रटली माला कान्हा।
बन मीरा गिरधर को रिझाऊं
बन द्रौपदी गुहार लगाऊं
बन जाऊं मैं कभी भी राधा
कान्हा तुझ को सँग मैं पाऊँ
प्रेम भावना गहरी ऐसी
भव सागर से मैं तर जाऊं
आओ दर्शन दे दो कान्हा
और ना कुछ तुमसे मैं चाहूँ।
लागा मुझको रोग प्रेम का
कैसे उसको रहूँ छुपाये--- कान्हा
डूब डूब मैं प्रेम सागर में
पा जाऊंगी यहीं किनारा।
मुझको कान्हा अंग लगालो
अब मुझको ख़ुद में ही समालो
बोझिल होती मेरी साँसे
प्रभुवर मुझको तुम ही संभालो।
स्वरचित
निशा'अतुल्य"
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