विनती
फूलो से सजाया है
दरबार तेरी मइया
संकट से घिरा हू, मै
बिगड़ी बनाने,आ जाओ
इक बार, मेरी मइया
मां के दरबार में
जो भक्त सर झुकाते है
वो रोते रोते, आते हैं, और
हंसते हंसते जाते है
तेरे चरण में,मेरी जिंदगी
उजियार, मेरी मइया
बिगड़ी बनाने, आ जाओ
इक बार मेरी मइया
फूलो से सजाया है
दरबार तेरी मइया
मां के दरबार में, जो
सच्चे मन से,आते है
मां के दरबार में, जो
हाजिरी लगाते है
कर दे करम,तू मुझमें
इक बार मेरी मइया
बिगड़ी बनाने,आ जाओ
इक बार मेरी मइया
फूलो से सजाया है
इक बार मेरी मइया
चार दिन की,जिन्दगी
कहीं देर न,हो जाये
कब आओगी,मइया
हम विदा न हो जाये
कहां है,अंबे मइया
यही सब,पूछते है
तेरे बिन,मन घबराये
फूलो से सजाया है
दरबार तेरी मइया
संकट से घिरा हू,मै
बिगड़ी बनाने,आ जाओ
इक बार मेरी मइया
नूतन लाल साहू
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
नूतन लाल साहू
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