होली
भक्त प्रहलाद की बात को छोड़
नरसिंग अवतार की याद को छोड़
चाहे भिगो लो,सारे कपड़े
चाहे भिगो लो,किसी का अंग
जब तक प्रभु भक्ति से
दिल नहीं भीगे,सारे रंग है कम
कोई बजावे,झांझ मंजीरा
कोई बजावे, नगाड़ा
कवि खेले कविता के होली
भक्ति के रंग में रंग जाना है
रंग गुलाल पिचकारी से
होली खेलना तो, एक बहाना है
जब तक प्रभु भक्ति से
दिल नहीं भीगे,सारे रंग हे कम
अब ये त्योहार,पीने का बहाना है
दरुहा के ऊपर,दारू चढ़ा होता है
हर रंग में,भंग मिला होता है
सिधवा होली खेलने से डरता है
इसलिए खोली में ही रहता है
चाहे कोई रंग डाले,चाहे कोई भंग डाले
जब तक प्रभु भक्ति से
दिल नहीं भीगे,सारे रंग हे कम
मै तो कहता हूं कि कलिया बन जाओ
फूल बन तुम मुस्कुराओ
मधुर मधुर,मस्त मस्त
होली गीत,तुम सुनाओ
जैसे नाचे थे,श्याम संग भानु दुलारी
फगुआ की फाग,बन जाओ तुम
भक्त प्रहलाद की बात को छोड़
नरसिंग अवतार की याद को छोड़
चाहे भिगो लो सारे कपड़े
चाहे भिगो लो किसी का अंग
जब तक प्रभु भक्ति से
दिल नहीं भीगे,सारे रंग हे कम
नूतन लाल साहू
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें