नूतन लाल साहू

अंतर
पहले पूजा पाठ में
घी का दीपक जलाएं जाते थे
अब जलती हुई,मोमबत्ती बुझाकर
बर्थ डे, मनाये जाता है
अब वो जमाना नहीं रहा
औरत पालने को कलेजा और
गृहस्थी चलाने को भेजा चाहिये
शादी में लड़की मंगनी का रस्म
बाप दादा निभाते थे
सात जन्मों का रिश्ता होता था
अब लड़की,पसंद कर लड़का ही
ब्याह रचाते है
अनेकों दुल्हन,दो चार साल बाद
फुर्र हो जाते है
हर गाव में,देखो कितने ही
परित्यकता बैठे है
अब वो जमाना नहीं रहा
औरत पालने को कलेजा और
गृहस्थी चलाने को भेजा चाहिये
पहले बहू, डरती थी
सास कैसे मिलेगा
अब सास, डरती है
बहू कैसे मिलेगी
क्योंकि अब तिजौरी का चाबी
बहू के पास होता है
अब वो जमाना नहीं रहा
औरत पालने को कलेजा और
गृहस्थी चलाने को भेजा चाहिये
पहले चार आने के साग में
पूरा परिवार खा ले
अब,चार रुपए का साग
अकेला खा जाता है
बरसात में पानी
ठंड में कड़ाके की ठंड और
ग्रीष्म ऋतु में गर्मी पड़ता था
अब समय, अनफिस्कड़ हो गया है
अब वो जमाना नहीं रहा
औरत पालने को कलेजा और
गृहस्थी चलाने को कलेजा चाहिये
नूतन लाल साहू


 


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