गीत
मन पंछी बन उड़ जाऊ
मन मेरे पंछी बन उड़ पाऊँ,
जहाँ नगरिया श्याम सुन्दर की,
दौड़ी दौड़ी आऊँ
मन मेरे -----------
काम क्रोध का छोड़ के जामा
श्याम गगन तक उड़ान भरूँ मै,
दरस श्याम सुन्दर के पाऊँ
मन मेरे-----------
या मन की देखो गति अनन्य है।
मिल जाये जो श्याम संग मे
निर्मल गति मै पाऊँ ।
मन मेरे------------
सारा जग सखी भटक रहा है ।
माया मोह मे उलझ रहा है।
मिल जाये जो बाँके बिहारी
धन्य धन्य हो जाऊँ ।
मन मेरे-------------
सारे जग के नाते रिश्ते।
जैसे है काटों के हार।
कृष्ण कन्हैया के रिश्ते से जीवन सहज बनाऊं ।
मन मेरे-------------
मै अनाथ तुम नाथ जगत के।
इस भटके मन को मै कान्हा
बार बार समझाऊँ ।
मन मेरे--------------।
स्वरचित मौलिक रचना के साथ सौदामिनी खरे रायसेन मध्यप्रदेश
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