*"होली"* (दोहे)
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*महका चारों ओर है, मादकपन मधुमास।
रंग भरे अनुराग से, फागुन का उल्लास।।
*आयी होली मदभरी, रंगों का त्योहार।
सींचो स्नेहिल रंग से, बाँटो सबको प्यार।।
*द्वेष-घृणा को त्याग दो, हो मन-मंथन-मेल।
होली हिय हर्षित करे, रंगों का यह खेल।।
*होली खेलो प्रेम से, बहे नेह रस धार।
साथ रहो तज दंभ को, करना मत तकरार।।
*बैर भुला दो आपसी, बनकर मस्त मलंग।
भेद-खेद को त्यागकर, भरो प्रेम का रंग।।
*कुंठित मन को खोलकर, भाव करो उद्दीप्त।
होली के शुचि रंग से, हो जाए मन तृप्त।।
*ढोल-मजीरे-बाँसुरी, बजे नगाड़े-चंग।
हास-ठिठोली-मसखरी, रंग न हो बदरंग।।
*नाश नशे में मत करो, तज दो दारू-भंग।
प्रेमिलपन अनुराग है, होली का हर रंग।।
*भस्म करो हिय-होलिका, प्रेम-पले-प्रह्लाद।
भावन-भव-उत्थान है, होली का आह्लाद।।
*रंगों की बौछार है, उड़े अबीर-गुलाल।
होली की शुभकामना, हिय में हो न मलाल।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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