डॉ अखण्ड प्रकाश, कानपुर,

वन्दना
(विशेष-: किसी भी शब्द में मांत्राओं का उपयोग नहीं किया गया है)
कर वरद अब रख मम सर पर।
चरण कमल पर नमत भगत सर।।


कमल चढ़त जय कहत सकल नर।
नयन दरस कर झर झर झर झर।।
अटक रहत जब लखत रजत तन।
भगत कहत जय जय जय कर।।


उछल उछल कर भगत नचत सब।
करत भजन कर ढप ढप ढप धर।।
करत हवन तब उठत अगन नव।
लपट करत लप लप लप लप सर।।


आखर आखर मनतर बन कर।
उतरत मन नभ पर भगतन कर।।
लउकत भगवन तन मगन मगन।
उतरत भव बनधन कतर कतर।।


नमन चहत मन अब चरनन पर।
कर   करमन   कर  चरर चरर।।
हरत सकल कलमष कषनन कर।
उठत रहता जब धन बम बम हर।
  (स्वरचित डॉ अखण्ड प्रकाश, कानपुर,मो.9839066076)


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