प्रदीप कुमार  सुजातपुर सम्भल(उ०प्र०)

युगों-युगों से ही रहे, भेड़ भेड़िये मीत।
कौवे के अखबार में, छपा गिद्ध का गीत।।


जब से बगुले ने सुने, मीठे मछली बैन।
तब से पागल प्रेम में, दिखता है बेचैन।
पा लेगा वह एक दिन,मन में ले विश्वास।
नदी किनारे साधना, करता है दिन रैन।।


करो प्रार्थना प्यार में, बगुला जाये जीत।
कौवे के अखबार में, छपा गिद्ध का गीत।।


मरने को तालाब में, कूदा मेंढक आज।
देख रहा था दूर से , सांपों का सरताज।
आनन फानन में पहुंच, मेंढक लिया निकाल।
पर उपकारी जीव पर, सकल सृष्टि को नाज।


जियें दूसरों के लिए, यही हमारी रीत।
कौवे के अखबार में, छपा गिद्ध का गीत।।


अंधेरों से त्रस्त हो, आज मुट्ठियाँ भींच।
घर से दिनकर देव को, लाये उल्लू खींच।
संरक्षण में बाज के, छूते गगन कपोत।
वानर भालू आजकल, रहे चमन को सींच।।


गर्माहट देने लगा, पूस मास का शीत।
कौवे के अखबार में छपा, गिद्ध का गीत।।


प्रदीप कुमार 
सुजातपुर सम्भल(उ०प्र०)


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