प्रखर दीक्षित* *फर्रुखाबाद*

*अर्पित शुभ लेखनि  दीपदान*


हे देवी कृपा करिए अनुनय , चहुँ ओर विभीषिका छन्न परी ।
हिय आह कराह विपत्ति विषम , यह औचक ब्याधि की धन्न गिरी ।।
कछु सूझै नहीं किंकर्तव्यमूढ़, हा विधना लिखी लिलार कहा,
महादेवी चंड़िका रुप धरौ, विपदा हरियो आसन्न घिरी।।


महामायी वत्सला पीर उदधि, वरदा देवी जग अभयदान।
जय महिषमर्दनी रणचंड़ी , दुर्गेश्वरी उबरैं विपति त्रान।।
हे अष्टभुजा जगदम्ब आर्त, किम सौख्य सुखद जीवन होवै,
कर जोरि प्रखर विनती मैया, अर्पित शुभ लेखनि  दीपदान।।


*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*


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