प्रखर दीक्षित

(कन्नौजी रसरंग)


*हो री होरी*


*होरी में अवसर तकें , कुछ रसिया मुँहजोर।*
*नौनी अंगना भीड़ में ढूँढें रस की पोर।।*
*    *    *
रंग घोर घेलना चौक धरो, हाय अबीर गुलाल भरे झोरी।
रंग डारी करी सरबोर सखी, सखि राह के बीच करै बरजोरी।।
कंचुकि लंहगा चुनरी टपटप, करे गाल गुलाल भई फचफच,
मग आंगन गैल अटा घेरी, हुरियारे कहैं  भौजी होरी।।



रतनारे नयन काजर आंजो मुरकीं अलकैं कच श्याम बरन।
मुसकानि अधर नथ मोती दपै कटि तिलरी कंगन की खनखन।।
इत निकसी पनघट कौं तिय हा!तकि मारी धार रंगी मोहन ,
तुम छैल सताओ न नार नवल काय डोलौ रंग भरि    घरन घरन।।


 


कजरारे नयन उरझी अलकैं लब सुरुचि महावर पांयन में।
मनमोहनि छबि वपु गौर बरन मिसरी सी घुरै लय गायन में।।
सखि पंक गलिन बगिरो बगिरो अंधियारी निशा बिजुरी कौंधै 
किमि जाइए श्याम बुलावैं भटू हाय आग लगे जा साउन में।।


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