प्रवीण शर्मा ताल

क्यों गये पिया परदेशवा?,"तुम्हरी याद आती हैं।"



कैसे मेरी निंदियाँ चुराती हैं,
जैसे चाँदनी सरहद से उतर जाती  हैं,
जैसे कोई  सन्देशा लेकर आती हैं,
क्यों गये पिया परदेशवा, 
तुम्हारी याद आती हैं।


आँगन में बैठी बैठी राहों में पलके 
बिछाये  हवाएँ कुछ कह जाती है,
जलते हुए प्रीत के दीये में आँसुओ से
बून्द बून्द तेल उड़ेला जाती है,
क्यो गये पिया परदेशवा ?
तुम्हारी याद आती हैं।


हँसी मजाक की चलती थी बाती
दिन उजाले में मुस्कान लाती।
अब तुम्हारे बिन ये आँगन के परिंदे में
बिखलती- बिखलती मुरझा जाती।
क्यों गये पिया परदेशवा?
तुम्हारी याद आती हैं।


अब तो आजाओ  मेरे पिया 
फागुन की होली आई हैं,
रंग बिरंगे अमवा की डाली पर
खुशियाँ झोली भरके लाई हैं।
तुम्हारे आने से मेरे मन की तितलियाँ
 हर्षाती है,
तेरे बिन मेरा दिल धक- धक तड़पाती
 है,
क्यों गये पिया परदेशवा ?
तुम्हारी याद आती है।



*✒प्रवीण शर्मा ताल*


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...