*विषय -तन्द्रा*
*मालवी रचना*
मु तो हवेरा -हवेरा तन्द्रा खोली,
देखन तावड़ो की भर भर आई झोली।
तन्द्रा खोली न मुंडो कण्णी को देख्यो
हामे जो पेला वण्णी को मुंडो देख्यो।
तावड़ो देखिन आँगन में कुकड़ो बोल्यो
गली- गली में हगरा की तंद्रा खोल्यो।
आँगन में धमक सी कई हुन्यो कि
कोई आयो अखबार जोर ती नाक्यो।
एक -एक पन्ना पर तन्द्रा फेरीन,
अखबार उठाईन खबरा वाच्यो।
फटाफट वाचता -वाचता खबरा,
मारी लुगाईन ने गर्म चा लादी,
थोड़ी देर में कई देख्यो कि कोई
हाटा फूटा वारो आवाज लगा दी।
मारी तन्द्रा देखिन वण्णी की ओर
ध्यान में मगन- मगन ती सुहादी.।
*😁✒प्रवीण शर्मा ताल*
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