किताब पढ़ना
पढ़ना............ किताब
हर किसी के ,
बस की बात नहीं।
यह आधार ....है ।
जिंदगी का,
डिजिटल होती ,
सोच के भी बस नहीं।।
पढ़ना .......किताब
हर किसी के ,
बस की बात नहीं ।
किताब ....किताब है ।
जिंदगी का असली लिबास है।
नेटवर्क जाते ही ,
सब...... बेकार है ।
तब किताब ही,
जिंदगी की ,
असली पहचान ,
याद आती है ।
यह तो पोटली है ...जादू की
पन्नों से कितने राज खोल जाती है।
स्वरचित रचना
प्रीति शर्मा "असीम "
नालागढ़ हिमाचल प्रदेश
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