प्रिया सिंह

तन्हाइयों के पन्नों को अश्कों से सजाया होगा
एक दीप को रात भर आँखों से जलाया होगा


बहुत संगदिली आ गई जाने क्यों उसके अंदर
उसे किसी ने खूब मोहब्बत से सताया होगा 
 
ये लहर आ आकर लौट जाती है वापस क्यों
समंदर पर उसका नाम अंगुली से बनाया होगा


तूर का फ़ितूर आखिर क्या था कठोर हो गया
जरूर उसका दिल पत्थर से सजाया होगा


बेसब्री का बांध दिल थाम ना पाता कभी भी
इसको किसी ने मोहब्बत से समझाया होगा


मैं तुम कभी हम कैसे बन पाते सोचा है जरा
जरूर इश्क बड़े जद्दोजहद से जताया होगा


खुश्क पत्ते की तरह अलग हो जाते शजर से
मैंने जमीर को अब इस खाक से उठाया होगा


बहुत सितमगर हो बात बात पर रूठ जाते हो
किसी ने बहुत खुफिया तदबीर से मनाया होगा


चाँद नींद आँखों में भर के देखता है छत पर
दिल ने छल कर शब-बे-दारी से जगाया होगा


 


Priya singh


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