प्रिया सिंह

ये बारिश नहीं.....उजाड़ का मेरे इम्तिहान है
इस परिस्थिति में मरता देश का मेरे किसान है


मिट्टी धूल कंकड़ पत्थर सब को हटा दिया
उसकी ये हरी फसल ही तो मेरे अरमान हैं


आंधी,पानी,आग सब डराती है बे-वक्त 
लेकिन ये खेत ही तो उसकी और मेरी जान है


बेटियाँ शादी बराती सब कैसे कर दें बोलो
जब अपना खेत अपना घर मेरे अंजान है


लोन कैसे चुका दे सब हारने के बाद अब
अब धीरे-धीरे बिखरता मेरे स्वाभिमान हैं


इज्ज्त दौलत अब सब मिट्टी में मिल गया
अब एक एक ईटों से बिकते मेरे मकान हैं


मेहनत मशक्कत ये पैरों के दरार भी ना कहेंगे 
बहुत घायल बहुत जख्मी मन का मेरे विमान है


फसल के साथ-साथ हौसला भी हार रहा मैं 
कितने बड़े यहाँ वास्तव में मेरे भगवान हैं


मैं मर ना जाऊँ सरकार तो बोलो क्या करूँ 
रेगिस्तान बन कर रह गये ये मेरे बागवान है


बहुत मौज से हो शहर के खिड़कियों में तुम
अब तुम सब को ये जीवन भी मेरे दान हैं


 


Priya singh


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...