प्रिया सिंह

औरत नहीं ये कीमती हीरा है
ये गिरिधर की वैरागी मीरा है
इसे छेडो मत गलियारों में 
इसकी गिनती है उजियारों में 
ये एक वट की हरियाली शीरा है
ये गिरिधर की वैरागी मीरा है 


ये जलती सीता की पीड़ा है
ये बैखौफ सी होती धीरा है
इसे छोड़ों मत अंधियारों में 
इसे जलने दो अगियारों में 
ये सरल स्वभाव गंभीरा है
ये गिरिधर की वैरागी मीरा है 


ये समंदर पर बसा जजीरा है
ये बेटी देश की कशमीरा है
ये आती कहाँ है खाकसारो में 
इसकी गिनती है इज्जतदारों में 
ये वेद की एक इलाजी चीरा है
ये गिरिधर की वैरागी मीरा है 


हौसलों की धधकती वीरा है
ये मसाला,मिर्च और जीरा है
कमी नहीं इसके व्यवहारों में 
अद्भुत है नारी संस्कारों में 
रिस्तो में फसी जंजीरा है
ये गिरिधर की वैरागी मीरा है 



ये बसा खुशहाल मंदीरा है
ये स्वेत प्रेम बानों रघुवीरा है
ये आती है बेशक होशियारों में 
जिल्लत शूमार है अधिकारों में 
ये साफ किरदार शकीरा है
ये चंचल शौख फकीरा है
ये गिरिधर की वैरागी मीरा है 
औरत नहीं ये किमती हीरा है



Priya singh


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