प्रिया सिंह

चेहरा उसका फूलों से सजा गुलदस्ता तो नहीं है
ये अहल-ए-नजर का बनता वाबस्ता तो नहीं है


मैं करवट बदल बदल तारे गिनता रहता हूँ छत पर
कहीं मुझको देख ये मगरूर चाँद हँसता तो नहीं है


बस एक दीद के लिये जहद-ए-मुसलसल करते थे
वो मेरा हमनशी मुझे  पागल समझता तो नहीं है 


विसाल-ए-यार का ये मुसाफ़त नया नया सा है
पाक दामन में पलता पाकीज़ा राब्ता तो नहीं है 


ये तमाम सड़क शहर भर की फूलों से सजी होगी
ये चाहत का सुहाना सफर उतना सस्ता तो नहीं है 


उसका बन्द आंखों से चुपचाप इबादत कर दूँ मैं तो
वो शख्स कार-ए-मोहब्बत का फरिश्ता तो नहीं है  


शब-ए-गम जब गुजरे तब गुजरे इश्क में बेशक 
ये कांच जैसा फर्श पर हमेशा बिखरता तो नहीं है 


हार पाकर गर बस जाएँ उनके जहन-ओ-दिल में 
ये तो जीत होगी मेरी यहाँ पर शिकस्ता तो नहीं है 


ये रंग-ए-जुनूँ ये शब-बे-दारी के करार पर गुजरना
वो इस बेक़रारी वाली बातों से दानिस्ता तो नहीं है 



Priya singh


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