कुण्डलिया
कविता मनकी उपज है , जो देखा त्यों बोय ।
भाव कलम से बाँधते , लेखन कला सँजोय ।।
लेखन कला सँजोय , चित्र जब लगे सुहाने ।
होवे मनः अधीर , ह्रदय हो तब अकुलाने ।।
कह ननकी कवि तुच्छ , बहे रस प्रवाह सहिता ।
गीत ग़ज़ल तट बद्ध , धार सी बहती कविता ।।
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कविता कवि की प्रेयसी , हृदय भाव का सार ।
व्योम दिशा बहु कल्पना , उडे़ पखेरू प्यार ।।
उड़े पखेरू प्यार , सत्य का करता दर्शन ।
पाता मन विश्रांति , पुष्प दल करता अर्चन ।।
कह ननकी कवि तुच्छ ,शब्द प्रक्षालित सरिता ।
प्रगटे कर श्रृंगार , पटल पर प्यारी कविता ।।
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कविता सुंदर वृक्ष है ,भांति भांति फल फूल ।
गहरी हैं इनकी जड़ें , कहीं गन्ध अरु शूल ।।
कहीं गंध अरु शूल , काव्य को करे सुवासित ।
बनते प्रेरक भाव , कर्म पथ प्रखर प्रवाहित
कह ननकी कवि तुच्छ , ललित लय ललकित ललिता ।
कालजयी कमनीय , केलि कल करती कविता ।।
~ रामनाथ साहू " ननकी "
मुरलीडीह
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