रचना सक्सेना  प्रयागराज 

आज की नारी है सबला।


कोमल मन चितवन चंचल है, 
भरी ममता से हर अबला।
पलकों से वह नीर छिपाती, 
आज की नारी है सबला।


हर गुल महके गुलशन उसका, 
हरी भरी हरियाली हो। 
तूफानों को सह करके भी, 
प्रेम सुधा की प्याली हो।
आग में तपती वह कंचन है, 
मत कहना उसको अबला। 


आज की नारी है सबला।


ख्वाब बेलती रोटी में जो
माँ पत्नी तुम प्यारी हो
हाथों में रक्षा का बंधन
बहना जग से न्यारी हो
अदभुद अभिनय तेरा मंचन है
किरदार निभाती हर अबला 


आज की नारी है सबला।


रचना सक्सेना 
प्रयागराज 
5/3/2020 


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