"तेरी याद मेँ..."
आप की याद हमेशा आती रहेगी
ख्वाहिश जिन्दा रहेगी
याद अजर अमर है
बेघर है
इसीलिए तो कोई सुनता नहीं है
कुछ गुनता नहीं है
जिसकी कोई निश्चित जगह न हो
उसका भला कौन हो
असहाय और निराश को कौन याद करता है
वह मौन फरियाद करता है
आँखों में आँसू हैं
हृदय पीपासू है।
आदमी ऊपर देखता है
सुपर को देखता है
नीचे देखने का अभ्यास कहाँ?
नीचे का उपहास यहाँ।
आदमी मरघट है
निघर्घट है
वह सम्मान का आदी हो चुका है
स्वयं स्वार्थवादी हो चुका है।
उसे किसी भी निरीह की याद नहीं आती है
पूंजीवाद की याद आती है
नैतिकता और मानवता उसकी परिधि में नहीं हैं
सुन्दरता उसकी उर-उदधि मेँ नहीं है।
किसी की याद को शायद ही कोई महत्व देता हो
उसके दिल की आवाज की शायद ही कोई सुनता हो।
प्रीति सरस है
मधुरस है
मधुरिम है
अप्रतिम है
परन्तु वह मूक और मौन है
भला उसकी भूख को समझता कौन है?
हमें किसी की याद मेँ खो जाने दो
सदा-सदा के लिए सो जाने दो।
अगले जन्म में देखा जायेगा
अपना खुद का संदेश पढ़ा जायेगा।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें