"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"
ब्राह्मण संस्कृति लेखिका सिद्धियोगिनी सार।
पुस्तकधारिणी माँ करें जीव जगत से प्यार।।
ब्राह्मी माहेश्वरी सरल चित।सद्गति- दात्री कला सुसंस्कृत।।
निराकार अविकार निराश्रय।परम चिन्तना दिव्य सुधामय।।
विष्णु बनी ले शंख-चक्र तुम।असुरदहन के लिए वक्र तुम।।
ब्रह्म बनी करती रचना हो।बोला करती मधु बचना हो।।
शंकर बनकर देत विभूती।काशी क्षेत्रे शिव-अवधूती।।
सीताराम कृष्णराधा बन।देख प्रफुल्लित होता जनमन।।
ब्रह्मज्ञानमय अमित महा हो।विद्या महा शिवा शुभदा हो।।
दिव्य दृष्टि दाता बन आओ।निज भक्तों पर खुश हो जाओ।।
नर लीला करना नित माँश्री।मन-उर बसो सतत हे श्रीश्री।।
करें सदा हम तेरा अर्चन।मिले तुम्हरा पय-अमृतपन।।
तेरा ही प्रिय ध्यान हो और नित्य यशगान।
ज्ञान निधान सुजान माँ का पायें वरदान।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
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