"मेरी पावन मधुशाला"
एक रंग में रंगा हुआ है आदि काल से प्रिय प्याला,
एक भाव मादकता सुरभित मधु-रंगी मेरी हाला,
एक आचरण प्रेम आचरण दिव्य रंग है साकी का,
एक रंग बहु-रंग समाहित स्वेत-सत्व-शिव मधुशाला।
बड़े-बड़े विद्वान धरा पर किन्तु न समझे हैं प्याला,
गूढ़ रहस्यों के ज्ञाता भी जान न पाये मृदु हाला,
वेद-पुराणों के मनीषियों की मेधा में नहिं साकी,
सर्वज्ञानसम्पन्न स्वयं में शिव-स्वरचित मधु मधुशाला।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801
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