रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"महिला दिवस"


नारी, तुम कौन हो?
क्यों मौन हो?


तुम आधार हो
अथवा निराधार हो?


तुम्हें किसने बनाया है?
किसने सजाया है?


तुम अनमोल हो
या कि मीठे बोल हो?


आदि हो या अन्त
अथवा अनादि और अनन्त?


तुम रूपसी हो
अथवा वेवशी हो?


तुम अमर सफर हो
अथवा लाचार बेघर हो?


तुम जीवनदात्री हो
या अंधयात्री हो?


तुम सर्वगुणसम्पन्ना हो
अथवा विशुद्ध विपन्ना हो?


तुम दिन हो या रात
अथवा दिन-रात?


तुम भोग्या हो
या परम सुयोग्या हो?


तुम निरापद हो
अथवा संदेहास्पद हो?


तुम सकल संपदा हो
या आंशिक /पूर्ण विपदा हो?


तुम खुशी या गम हो
अथवा आगम और निर्गम हो?


तुम धर्म अर्थ काम और मोक्ष हो
अथवा निर्जीव परोक्ष हो?


तुम शान्त रस हो
अथवा अशान्त अपयश हो?


निर्गुण निराकार हो
या सगुण विकर हो?


तुम सहज सरल निश्छल प्रीति हो
अथवा  असहज क्लिष्ट छल-नीति हो?


तुम औदार्य हो
अथवा कौठार्य हो ?


तुम सद्गति हो
अथवा दुर्गति हो?


तुम सत्यम शिवम सुन्दरम की परिभाषा हो
या कठोर निराशा हो?


तुम पुरुषजनित हो
अथवा स्वरचित-मातृरचित हो?


नारी!तुम सर्व हो
सृष्टि का महान पर्व हो।


तुम माया और दाया हो
नैतिकता की दैवी काया हो।


तुम अविनाशी अनन्त हो
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की स्त्रीवाचक कंत हो।


तुम परमेश्वर और परमेश्वरी हो
उमा माहेश्वरी हो।


अर्धनारीश्वर हो
सचमुच में शिवशंकर हो।


तुम पुरुष की शिक्षा हो
वैराग्य की दीक्षा हो।


तुमें कोटिशः प्रणाम करता हूँ
सम्पूर्ण नारी के स्वाभिमान का सम्मान करता हूँ।


महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


 


 


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...