रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"श्री प्रीति महिमामृतम"


धर्मपरायण रत्न शिव प्रीति परस्पर नित्य।
अमित भावना स्नेहमय मधुर मिलन नव स्तुत्य।।


धर्म एक नित प्रीति बढ़े अब।मिलकर जुलकर एक रहें सब।।
सब हितकर प्रिय वाणी बोलें।एक दूसरे को सब ढो लें।।
प्रेम रत्न का खुले खजाना।हों आनन्दित सब मनमाना।।
द्वेष परस्पर दूर भगाओ।ममतावादी गीत सुनाओ।।
समता का ही मंत्र जाप हो।पृथ्वी पर मत कभी पाप हो।।
करें सभी सबकी सेवकाई।मानव सेवा धर्म दवाई।।
सभी करें सबका नित आदर।दिल में बहे प्रीति का सागर।।
दोस्ती बढ़े मिटें सब दुश्मन।सारी जगती में हों सज्जन।।
हो मानव की नित्य आरती।सजें मनुज जैसे बाराती।।
चेहरे पर मुस्कान विखेरो।हंसमुखी मनिया को फेरो।।
सत्युग  का आनन्द लीजिये।मानव को आनन्द दीजिये।।
निर्मल मन से बात करो अब।रस बन सबका उदर भरो अब।।
नित्य पान कर प्रेम रसामृत।गाते चलना प्रिय महिमामृत।।


सबका साथी बन गहो सब मानव की बांह।
जीवनभर रख हृदय मेँ दिव्य प्रीति की चाह।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...