"मेरी पावन मधुशाला"
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र से ऊपर उठा हुआ प्याला,
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई से बढ़कर मेरी हाला,
निराकार ओंकार सरीखा मेरा सर्वविदित साकी,
ब्रह्ममंडलाकार सदृश है मेरी पावन मधुशाला।
अंत्योदय की बातें करता रहता है मेरा प्याला,
अंतिम मानव के आँसू से बनी हुई मेरी हाला,
अंतिम मानव के संरक्षण हेतु खड़ा मेरा साकी,
दलित-पीड़ितों की शरणालय मेरी पावन मधुशाला।
मानव का नित वन्दन करता जाता है मेरा प्याला,
मानवता को जीवित रखने हेतु बनी मेरी हाला,
प्राणि मात्र की सेवा के व्रत का संकल्प लिये साकी,
सेवा को ही धर्म बताती मेरी पावन मधुशाला।
जिसे प्रकृति से सहज प्रेम है वही एक उत्तम प्याला,
सुघर प्रकृति की सुन्दरता सी मधु मादक मेरी हाला,
सदा प्राकृतिक छटा सरीखा अति मनमोहक साकी है,
सकल प्राकृतिक विभव संपदा सी सुन्दर है मधुशाला।
मन -मंदिर की शिव प्रतिमा सा भव्य चमकता है प्याला,
शिवभावों से भरी हुई है मेरी दिव्य सुरभि हाला,
बना पुजारी मनमंदिर का करत आरती साकी है,
मन -मंदिर के शुभ सरवर सी मेरी पावन मधुशाला।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
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