रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"


स्वरचित ललित कला तुम्हीं प्रिय साहित्य अथाह।
देवी माँ श्री शारदा की हो सबको चाह।।


स्वनामधन्या प्रिया सरस्वति।दे माँ सबको अति शुभ शिव-मति।।
गहें सदा आदर्श तुम्हारा।दे माँ अपना देश पियारा।।
संगीतों की वर्षा कर माँ।अंजुलि में खुद हर्षा भर माँ।।
कला औऱ साहित्य हमें दे।सदा फाल्गुनी प्यार हमें दे।।
श्रावण मास रहे आजीवन।।रंग-विरंगे पुष्पों का वन।।
ज्ञान मान पहचान बनो माँ।ध्यान यशस्वी गान बनो माँ।।
रग-रग में बस तुम्हीं रहो माँ।छायी रहो हृदय में नित मां।।
पुस्तकधारिणी मातृ शारदे।मीठा -मधुर ब्रह्म ज्ञान दे।।


आजीवन करना कृपा कभी न जाना रूठ।
तन-मन-उर के वृक्ष सब कभी न होवें ठूठ।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...