रवि रश्मि 'अनुभूति 'मुंबई

 


  ग़ज़ल 
÷÷÷÷÷÷
मिसरा ---
चुभता है दिल में बबूल जैसा 


बह्र ----
121    22    121    22


क़ाफ़िया --- ऊल  ( धूल , फूल , बबूल 
                   आदि ) 
रदीफ़  ----  जैसा 


मिला मुझे वो ही भूल जैसा .....
चुभा है दिल में शूल जैसा .....


हुआ है रोशन दिखा हमें तो .....
मिला हमें वो रसूल जैसा .....


रहें हम जाकर उसी जगह पर .....
मिला जो हमको यह कूल जैसा .....


 रक्षा हितार्थ अड़ा है जो भी .....
उगा है वह तो लो शूल जैसा .....


डरा नहीं वह तूफ़ान में भी .....
रहा खड़ा जो उसूल जैसा .....


लगा चमकता चेहरा भी तो.....
खिला - खिला वो तो फूल जैसा .....


चुभी है किरकिरी आँख ही में .....
उठा गुब्बार भी धूल जैसा .....
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(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '


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