ऋचा वर्मा

एक कप चाय


"कहिये क्या काम है",
लंच कर रहे सहायकों में से एक ने कहा।
"इनके पेंशन में सुधार करवाना है।"
आगंतुक ने अपने हाथ में लिए कागजातों की ओर इशारा किया।
"इसी कार्यालय में पदस्थापित थे?"
"जी, इसीलिए तो यहां आया हूँ।"
"अच्छा, इंतजार कीजिए, लंच करके देखता हूँ।"
लंच करने के बाद सहायक ने कागज उलट - पलट कर देखा, सब कुछ सही था।
" देखिए सभी कागजात तो सही हैं, लेकिन इस अॉफिस में काम इतनी आसानी से नहीं होता",
".... तो इसके लिए क्या करना होगा ",
" फिलहाल तो हम - सब को एक - एक कप चाय पिलवा दीजिए ",कुटिल मुस्कान के साथ सहायक ने कहा। आगंतुक ने खुशी - खुशी सहायक की फरमाईश पूरी कर दी और वहां से चला गया। चाय आ गई, लोग अभी चाय पी ही रहें थें कि सहायक के मोबाइल पर साहब का फोन आ गया, 
"जी सर", फोन पर साहब का नंबर देखते ही सहायक स्वचालित मशीन की तरह अपनी जगह पर उठ खड़ा हुआ। साहब ने फोन करके उसे अपने कक्ष में बुलाया था....।
   साहब के कक्ष में पहुंचकर उसने जो कुछ देखा उसे दिन में तारे दिखाने के लिए काफी था।... अभी - अभी जिस व्यक्ति से उसने एक कप चाय पिलाने की फरमाईश की थी, वह साहब के साथ बड़ी आत्मीयता के साथ बैठा चाय पी रहा था।
"अजय बाबू ये हैं हमारे परम मित्र, अभी हाल में अपने विभाग में पदभार ग्रहण किये हैं, और अब ये मेरे बॉस हैं, इनका काम...."
साहब की बात अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि 
" जी सर अभी करता हूँ.. "
कहता हुआ सहायक. फुर्ती से कक्ष से निकला और आनन फानन में संचिका तैयार..... ।
 " क्या हुआ आज एक कप चाय में ही..."
 एक सहकर्मी ने चुटकी ली।
" आज के बाद यह भी नहीं"
एक हाथ में संचिका और दूसरे हाथ से कान पकड़े सहायक को देख उसके सारे सहकर्मी जोरों से हंस पड़े। 



ऋचा वर्मा


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