गीत
फूल सजाकर इन अंगों में ,
सजनी लगे सजीली हो ।
रंग भरी पिचकारी लेकर,
लगती बड़ी रसीली हो ।।
मीठी लगती तेरी बोली ,
तू है सबकी हमजोली ।
रसिक भाव की बनी स्वामिनी ,
मन मति की निश्छल भोली ।।
.......संग सहेली झूमझूम कर,
लगती छैल ,छबीली हो ।
रंग भरी पिचकारी लेकर,
लगती बड़ी रसीली हो ।।
आयी है तू लेकर टोली ,
मस्ती की होगी होली ।
हर मनसूबे अब हों पूरे ,
खा लें हम भांग नशीली ।।
इठलाती सदा हंँसी देकर,
लगती बड़ी हठीली हो ।
रंग भरी पिचकारी लेकर,
लगती बड़ी रसीली हो।।
खुशियों से भर दो तुम झोली ,
आँखों से मारो गोली ।
तुम हो जाओ मेरे प्रियतम ,
आज सजे सपने डोली ।।
हाथ अपने सारंगी लेकर ,
गाती बड़ी सुरीली हो ।
रंग भरि पिचकारी लेकर,
लगती बड़ी रसीली हो।।
------ रीतु प्रज्ञा
दरभंगा, बिहार
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