*"रिश्ते"* (दोहे) (भाग 1)
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°रिश्ता रस है प्यार का, एक अमिट अहसास।
हियतर कोमल जान लो, समझौता है खास।।1।।
°रिश्ता तो अनुभूति है, बडा़ लहू से जान।
अपने हैं अनजान भी, अपने भी अनजान।।2।।
°रिश्तों की सीमा नहीं, ये हैं अतुल-अनंत।
निर्मल-सुखद प्रवाह ज्यों,महकत महक-वसंत।।3।।
°परिजन,पालक,पाल्यजन, रिश्ता जो भी होय।
मानवता से है बडा़, और न रिश्ता कोय।।4।।
°रिश्ता भान अमोल है, इससे मुख मत मोड़।
यह शुभ सुख अनुभूति है, इसे धरम से जोड़।।5।।
°रिश्ते बनते भाव से, करो न भाव अभाव।
भाव-भला भरपूर भर, रखना नीक स्वभाव।।6।।
°मन से कर निर्वाह जो, रखता रिश्ता टेक।
सच्चा रिश्तेदार वह, कर्म करे जो नेक।।7।।
°रिश्तों का मत मोल कर, होते ये अनमोल।
काल-कष्ट, सुख-संपदा, रिश्तों से मत तोल।।8।।
°कटुता का विष भूलकर, बैन मधुर है बोल।
रिश्ता सबसे जोड़ना, मन की गाँठें खोल।।9।।
°रिश्ते नेक बने रहें, कृपा करें भगवान।
'नायक' करता प्रार्थना, रिश्तों का हो मान।।10।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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