गजल
जीयो और जीने दो
जीव मांगे भीख ये आदत नहीं
सर उठाकर तू चले हिम्मत नहीं
क्यों बना मानव बता दानव यहाँ
छोड़ने वाली तुम्हें कुदरत नहीं
क्यों कुल्हाड़ी से रहा तू काटता
जीव तेरे बाप की दौलत नहीं
है इन्हें अधिकार जीने का सुनो
मिल यहां इनको रही इज़्जत नहीं
छोड़ जीवों को करो आज़ाद अब
प्राण से बढ़कर कहीं कीमत नहीं
संदीप कुमार बिश्नोई
दुतारांवाली तह0 अबोहर पंजाब
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