संदीप सरस, बिसवां

🔵कवि तुम ऐसी रचना लिखना...


कवि तुम ऐसी रचना लिखना जिसमें जीवन राग मुखर हो।


जीवन के पथरीले पथ को पौरुष का परिचय लिख देना।
बाधाएँ कितनी भी आएँ उनको बस संशय लिख देना।
जल ठहरा तो सड़ जाएगा बहते रहना ही जीवन है,
कलकल जीवनगान सुनाती नदिया का आशय लिख देना।


उठती गिरती और संभलती लहरों की भाषा तो बाँचो,
कवि तुम ऐसी रचना लिखना,जीवन का संघर्ष प्रखर हो।


हँसते चेहरों के पीछे की छिपी वेदना भी पढ़ लेना।
और वेदना के अंकन का कोई फिर मानक गढ़ लेना।
कोई दीन-दुखी मिल जाए उसके कुम्हलाए अधरों पर, 
थोड़ी मुस्काने चिपकाकर धीरे से आगे बढ़ लेना।


सपने बाँझ हुए हैं जिनके, जीवन प्रश्न चिह्न जैसा है,
कवि तुम ऐसी रचना लिखना, उनके प्रश्नों का उत्तर हो।


जब इतना हो जाए कवि तो, अंतर को आंदोलित करना। 
जीकर जीवन गान लिखा क्या, खुद को भी संबोधित करना। 
हम सुधरेंगे युग सुधरेगा यह तो सदियों से सुनते थे,
निज शोधन की मर्यादा भी जीवन में संशोधित करना।


जितनी हो अनुभूति गहन उतनी अभिव्यक्ति प्रखर होती है,
कवि तुम ऐसी रचना लिखना जो जीवन का जीवित स्वर हो।


संदीप सरस, बिसवां


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...