*चित्रण*
विधा : कविता
जिन्हें हम ढूढ़ रहे,
रात के अंधेरों में।
वो तो बसते है,
हमारे दिल के अंदर।
कैसे लोग समझ,
नही पाते उन्हें।
जबकि वो होते है,
सदैव हमारे अंदर।।
मन की लगी आग को,
कैसे तन से बुझाओगे।
कुछ उनके कहे बिना,
कैसे समझ पाओगे।
यदि दिलसे उनके हो,
तो उनको समझ जाओगे।
और उनसे मिलने को,
उनके पास जाओगे।।
जिंदगी का चित्रण,
कैसे में व्या करू।
चित्र खुद कहता है,
कहानी जीवन की।
न समझे यदि चित्रको
तो बेकार है चित्रकारी।
और जो समझते है,
वो ही प्यार करते है।
और जिंदगी के अंधेरों को,
रोशन से भर देते है।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (बीना) मुम्बई
08/03/2020
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें