*भरोसा..*
विधा : गीत
लूटकर सब कुछ मेरा,
और क्या लूटने आये हो।
दिल के खालीपन को,
क्या देखने आए हो।
दिल है ये मेरा,
कोई धर्मशाला नहीं।
जिसमे लोग आते,
और जाते रहते है।।
चोट हमने खाई है,
तुम्हें है क्या पता।
अपने बनकर मुझे,
अपनो ने ही डसा।
अब में किससे कहूँ,
मुझे मेरे ने ही डसा।
जिस पर था यकीन,
वही गैर निकला।।
अब तो इंसानों पर,
है नहीं भरोसा।
क्योकिं इंसान को,
इंसान ही खा रहा।
जब इंसानियत ही,
दिलों में जिंदा नही।
फिर क्यो इंसानों से,
हम उम्मीदे रखे।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना (मुम्बई)
14/03/2020
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